नौकरशाही वाले मुहल्ले में एक बार फिर हलचल है। ऐसे में गुरु से मुलाकात को मन बेचैन हो उठा था। सो, चल दिए उनसे मिलने। सोचा, देखें उनके मन में क्या चल रहा है। लोभ यह कि शायद कुछ नई बात पता चले। घर के पास पहुंचते ही गुरु नजर आ गए। खिड़की से कुछ गंभीर मुद्रा में बाहर देख रहे थे। कुछ और करीब पहुंचते ही देखा-खिड़की के पास मोहल्ले के युवा बातचीत में मशगूल थे, गुरु इन बातों की ओर ध्यान लगाए हुए थे।
Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : कायदे के फायदे
अचानक किसी की बात कानों में पड़ी-‘चौबे चले थे छब्बे बनने, दुबे बनकर लौट आए।’ अब समझ में आया कि दरअसल चर्चा किस मुद्दे पर हो रही थी। खैर, गुरु ने देखते ही दरवाजा खोला। कहा-आओ-आओ, सोच ही रहा था कि तुम अब तक कहां हो? सवाल के जवाब में गुरु से चिर-परिचित अंदाज में पूछा, ‘और सुनाएं, क्या चल रहा है।’
गुरु को पहले से ही अंदाजा था। सवाल का जवाब न देकर अपना प्रश्न जारी रखा, कहा-मेरी छोड़ो, ‘तुम सुनाओ! खबरों की दुनिया में तो इन दिनों ‘विनय’ विचार ही छाया हुआ है। ’जवाब देना था, सो कहा- आप सही कह रहे हैं। भ्रष्टाचार तो जैसे यहां रायते की तरह पसरा हुआ है। लंबा वक्त बीत गया है। एक से दो सूबे हो गए। बावजूद लूट की कहानी यथावत चलती रही। पहले चारा खाया गया तो आंखें सजल हो उठी थीं। अब तो एक के बाद एक नई सुर्खियां बन रही हैं।
कोई ‘मन’ का राग गाते-गाते फंस गया। कोई जमीन नापते-नापते नप गया। मनी तो जैसे लांड्री में रखने की चीज हो गई। अब यह दारू पीने-पिलाने का मामला…। न जाने यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा? गुरु बोले, बात तो तुम्हारी सही है लेकिन केवल इतनी ही बात नहीं है।‘ शायद अब वो समय आया था, जिसका इतनी देर से इंतजार था।
गुरु शुरू हो गए थे, बोले, ‘देखो, मैं यह नहीं कहता कि दोषी को पकड़ा नहीं जाना चाहिए, जरूर पकड़ा जाना चाहिए, दोष सिद्ध होने पर सजा भी मिलनी चाहिए।’ थोड़ा रुके, फिर बोले- लेकिन, असली ‘खेल’ तो पर्दे के पीछे से खेला जाता है। क्या जो पकड़ा गया, ‘खेल’ में केवल वही शामिल होता है या राजा को बचाने के लिए वजीर कुर्बान होता है। यह तो जानते हो ना कि अफसरशाह बनने के लिए कम पापड़ नहीं बेलने पड़ते। मेहनत से पढ़ाई-लिखाई, जुनून और ईश्वर प्रदत्त मेधा भी होती है। इन सबसे इतर प्रारब्ध की भी भूमिका होती है।
नौकरशाही : प्रोजेक्ट बनाम प्रोसेस
आरोप जब साबित होगा, तब होगा। आरोप भर लगने पर कोई अदना सा वर्दीधारी हाथ पकड़कर लगभग घसीटते हुए ले जाए, यह कितना सही है? कहते हैं संगठन में ताकत होती है। क्या तुम्हें पता है, इन बड़े लोगों का भी एक संगठन है? यह संगठन किसी साथी के आत्मसम्मान के लिए क्यों नहीं खड़ा होता? पिछली बार जब मिले थे तो बताया था न, किस तरह एक खाकी वर्दी वाले ‘खिलाड़ी’ के चले जाने के बाद उनका परिवार मदद के लिए दौड़ लगा रहा है।
‘खिलाड़ी’ के साथ उठने-बैठने वाले मदद के लिए आगे आना दूर, उनकी भागदौड़ देख मजे ले रहे हैं। ऐसे में दुर्गति नहीं होगी तो और क्या होगा। शायद ये भूल जाते हैं कि हम्माम में सब नंगे हैं। आज इनकी बारी है तो कल उनकी भी हो सकती है। वाजिब वजहों को लेकर स्टैंड लेना चाहिए। यहां तो सब खुद को बचाने में लगे हैं कि कहीं जांच की आंच उन तक नहीं पहुंचे। गुरु की बातें सोचने के लिए मजबूर कर रही थीं। विदा लेकर निकला तो मन में एक सवाल था, ये एसोसिएशन क्या है? कहां है?
Jharkhand Bureaucracy : नौकरशाही : ‘खिलाड़ी’ के साथ खेला

