नई दिल्ली. गाजा युद्ध के बीच भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह को लेकर बड़ा समझौता किया है। (India Iran Chabahar port deal) इस समझौते के बाद भारत को चाबहार पोर्ट के संचालन के लिए 10 साल का अधिकार मिल गया है। विश्लेषकों का कहना है कि रणनीतिक रूप से बेहद अहम यह बंदरगाह भारत के लिए यूरोप और रूस के दरवाजे खोल सकता है।
चाबहार ईरान के पाकिस्तान से सटे सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत का एक डीप वॉटर पोर्ट है, जिसे चीन के बनाए जा रहे ग्वादर पोर्ट का जवाब कहा जा रहा है। ईरान का यह पोर्ट भारत के सबसे करीब है और विशाल कार्गो शिप के लिए आना जाना बहुत आसान होगा। भारत और ईरान के बीच इस डील के बाद अमेरिका बुरी तरह से भड़क गया है और उसने प्रतिबंधों की धमकी दी है। यह वही अमेरिका है,जो चीन के खिलाफ चुप्पी साधे बैठा है, जो ईरान के साथ अरबों की तेल डील करके मालामाल हो रहा है।
बड़े जहाज भेजने में मिलेगी मदद (India Iran Chabahar port deal)
चाबहार बंदरगाह का संचालन भारत के हाथ में आने के बाद अब यहां से बड़े जहाजों को भेजने में मदद मिलेगी। जिसकी भारत को काफी जरूरत थी। क्योंकि अब तक भारत को ईरान, अफगानिस्तान और रूस जैसे देशों तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान से होकर गुजरना पड़ता था। लेकिन अब भारत सीधे इन देशों तक पहुंच सकेगा। इसके अलावा चाबहार बंदरगाह के महत्व को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी से मिली तमाम धमकियों के बाद भी भारत ने इस डील से अपने हाथ पीछे नहीं खींचे।
चीन-पाकिस्तान के लिए कैसे है यह झटका?
चाबहार पोर्ट का कंट्रोल भारत को मिलना, पाकिस्तान और चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं है। चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट बना रहा है, जो कि समुद्री मार्ग से चाबहार बंदरगाह से दूरी केवल करीब 172 किलोमीटर है। जबकि सड़क मार्ग से इन दोनों पोर्ट की दूरी करीब 400 किलोमीटर है।
क्योंकि पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट बनाकर इलाके में चीन अपना दबदबा बनाना चाहता है, ऐसे में ईरान के चाबहार पोर्ट का कंट्रोल भारत के पास होना काफी फायदेमंद है। एक ओर जहां इससे कोराबार के लिहाज से भारत की पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर यहां से पाकिस्तान-चीन के गठजोड़ को भारत करारा जवाब दे पाएगा।
भारत और ईरान के अधिकारियों ने क्या कहा
भारत और ईरान के अधिकारियों का कहना है कि इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के बीच यह समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत, आईपीजीएल यानी भारत लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश चाबहार में करेगा, जबकि फाइनेंस फंडिंग में अतिरिक्त 250 मिलियन डॉलर होंगे, जिससे अनुबंध का मूल्य 370 मिलियन डॉलर हो जाएगा।
भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि आईपीजीएल ने पहली बार 2018 के अंत में बंदरगाह का ऑपरेशन संभाला था और तब से 90,000 से अधिक टीईयू के कंटेनर यातायात और 8.4 मिलियन टन से अधिक के थोक और सामान्य कार्गो को संभालता रहा है।
21 साल बाद चाबहार पर हुआ समझौता
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और ईरान ने पहली बार 2003 में बंदरगाह पर चर्चा शुरू की थी। इस बंदरगाह में 100 मिलियन डॉलर का निवेश करने में भारत को एक दशक लग गया। इस बंदरगाह को लेकर समझौते पर दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण कदम अंततः 2016 में उठाया गया। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान हुआ।
भारत ने उस समय शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल के विकास के लिए 85 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण करने की भी प्रतिबद्धता जताई थी। 2018 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बंदरगाह में भारत की भागीदारी बढ़ाने की बात कही थी। इसके बाद से ही भारत और ईरान ने अक्सर उच्च स्तरीय आदान-प्रदान में बंदरगाह पर चर्चा की है।
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