Katchatheevu Island: लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के पास पड़ने वाले कच्छतीवु द्वीप को लेकर राजनीति तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कांग्रेस पार्टी पर बड़ा हमला किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करने का आरोप लगाया है। पीएम ने कच्छतीवु द्वीप का जिक्र किया है जिसे दशकों पहले भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार को सौंप दिया था। कच्छतीवु द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच में एक छोटा द्वीप है, लेकिन मछुआरों के लिए इसका महत्व काफी ज्यादा है।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा- “आंख खोल देने वाली और हैरान करने वाली बात सामने आयी है। नए तथ्य बताते हैं कि कैसे कांग्रेस ने कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया। इससे सभी भारतीयों में गुस्सा है और लोगों के दिमाग में फिर से ये बात साफ हो गई है कि वह कांग्रेस पर यकीन नहीं कर सकते। भारत की एकता को कमजोर करना, भारत के हितों को नुकसान पहुंचाना कांग्रेस के 75 साल के कामकाज का तरीका रहा है।”
Katchatheevu Island: कच्छतीवु का इतिहास क्या है?
कच्छतीवु एक 235 एकड़ का टापू है जो भारत और श्रीलंका के बीच पाक स्ट्रेट में पड़ता है। इस स्ट्रेट का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर रखा गया था, जो 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के गवर्नर थे। पाक स्ट्रेट को समुद्र नहीं कहा जा सकता। मूंगे की चट्टानों और रेतीली चट्टानों की प्रचुरता के कारण बड़े जहाज़ इस क्षेत्र से नहीं जा सकते।
‘द गज़ेटियर’ के मुताबिक़, 20वीं सदी की शुरुआत में रामनाथपुरम (रामनाड के राजा) ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया था और थंगाची मठ के एक पुजारी इस मंदिर में पूजा करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इस द्वीप पर कब्ज़ा कर लिया। हर साल फरवरी-मार्च के महीने में यहां एक हफ़्ते तक प्रार्थना होती है। 1983 में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ये प्रार्थना बाधित हो गई थी।
सेंट एंटनी चर्च भी इसी निर्जन द्वीप पर स्थित है। कच्छतीवु बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। मालगुज़ारी के रूप में रामनाथपुरम के राजा का जो दस्तावेज़ मिलता है उसके हिसाब-किताब में कच्छतीवु द्वीप भी शामिल था।
Katchatheevu Island: भारत में इस द्वीप को लेकर विवाद क्या है?
रामनाथपुरम के राजा ने द्वीप के चारों ओर मछली पकड़ने का अधिकार, द्वीप पर चराने का अधिकार और अन्य उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करने का अधिकार पट्टे पर दिया था। दोनों देशों के बीच लंबे समय तक इस द्वीप को लेकर विवाद रहा और साल 1974 में भारत ने श्रीलंका को द्वीप दे दिया। साल 1974 से 1976 की अवधि के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति सिरीमावो भंडारनायके के साथ चार सामुद्रिक सीमा समझौते पर दस्तखत किए थे।
इन्हीं समझौते के फलस्वरूप कच्छतीवु श्रीलंका के अधीन चला गया। लेकिन तमिलनाडु की सरकार ने इस समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और ये मांग की थी कि कच्छतीवु को श्रीलंका से वापस लिया जाए।
ये दलील दी जाती रही कि ये टापू रामनाथपुरम के राजा की ज़मींदारी के तहत आता था। रामनाथपुरम के राजा को कच्छतीवु का नियंत्रण 1902 में तत्कालीन भारत सरकार से मिला था। साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया और कच्छतीवु को वापस भारत में शामिल किए जाने की मांग दोहराई गई। कच्छतीवु को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच का विवाद केवल विधानसभा प्रस्तावों तक ही सीमित नहीं रहा।
साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने कच्छतीवु को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा। उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कच्छतीवु समझौते को निरस्त किए जाने की मांग की। जयललिता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से श्रीलंका और भारत के बीच हुए उन दो समझौतों को असंवैधानिक ठहराए जाने की मांग की जिसके तहत कच्छतीवु को तोहफे में दे दिया गया था।
Katchatheevu Island: अमित शाह ने भी किया हमला
कच्छतीवु विवाद पर गृह मंत्री अमित शाह ने भी कांग्रेस पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने कच्छतीवु को छोड़ दिया और इसके लिए उन्हें कोई अफसोस भी नहीं है। गृह मंत्री ने कहा कि कभी कांग्रेस का कोई सांसद देश को बांटने की बात करता है, तो कभी भारतीय संस्कृति और परंपराओं को बदनाम करता है। इससे पता चलता है कि वे भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ हैं। वे केवल हमारे देश को बांटना या तोड़ना चाहते हैं।