पितृपक्ष मेला: पितृपक्ष मेला का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले बिहार के गया में होने वाले पितृपक्ष मेले की याद आती है। पितृपक्ष मेला, जिसे श्राद्ध मेला भी कहते है जो एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक उत्सव है जिसे पितृपक्ष के महीने में मनाया जाता है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन से शुरू होता है। यह पर्व अपने पूरे महत्व के साथ हिन्दू संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस मेले में देश विदेश से श्रद्धालु एक साथ गया के मेले में उपस्थित होते हैं। गया में प्रचलित पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू हो रहा है, जो 14 अक्टूबर तक चलेगा। पितृपक्ष मेला मे पितरों की मुक्ति के लिए पिंड दान व श्राद्ध कर्म किए जाते है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों परलोक गये पूर्वजो को अपने धरती पर रह रहे परिवार से मिलने का अवसर प्राप्त होता है।
ऐसे तो पूरे देश भर में 50 से अधिक जगह पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण माना गया है मगर इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण बिहार के गया जिले को माना जाता है। गया में पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है। यहा बालू में भी पिंडदान होता है।
मेले का उद्देश
पितृपक्ष मेला का मुख्य उद्देश्य आपके पितरों की आत्मा को शांति देना है, और उनकी आत्मा को श्राद्ध के माध्यम से शांत करना है। इस मेले के दौरान पितरों की आत्मा के लिए पूजाएं की जाती हैं, धार्मिक क्रियाएं आयोजित की जाती हैं और धार्मिक प्रवचन दिए जाते हैं।
मेले की ख़ास तैयारी
2023 पितृपक्ष मेला के सफल आयोजन के लिए जिला प्रशासन जोरो-शोरों से तैयारी कर रही है। टेंट, पंडाल, लाइटिंग, सफाई, पेयजल और शौचालय सहित सारी व्यवस्था जिला प्रशासन की ओर से की जा रही है। पिंडदान के लिए विशेष व्यवस्था करते हुए अधिकारियों ने बताया कि प्रेतशिला पर अत्यधिक भीड़ होती है, जिसके के लिए विशेष व्यवस्था हो रही है।
साफ पेयजल की सुविधा रहे और कोई परेशानी ना हो इसके लिए अभी से ही तैयारी शुरू हो गई है। प्रेतशिला के पूर्व में 11 टॉयलेट बनाए गए हैं, प्रशासन द्वारा और 10 टॉयलेट बनाए जा रहे हैं। पानी पीने के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की गई है।
पितृपक्ष का इतिहास
मोक्ष के लिए हम पितृपक्ष का इंतजार कार्य है तो इसके इतिहास को समझना भी जरूरी है। गौर करने वाली बात यह है, पितृपक्ष मेला का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसका उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के बाद के जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से को मानता है और पितरों की आत्मा को प्रसन्न करने का अवसर प्रदान करता है। इस उत्सव के दौरान परिवारों द्वारा पितरों के नाम पर दान किए जाते हैं, जैसे कि अन्न, वस्त्र, धन, और अन्य आवश्यक चीजें। यह एक परंपरागत रूप से किया जाता है जो पितरों की आत्माओं की शांति के लिए माना जाता है।
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